हम अपनी ही तालाश मे दोस्तो बात ये की बचपन से ही लिखना पसंद था बात ये थी उम्र के ताराजू को बढ़ते देख बस मै खो गयी , वो लिखने की कला कही गायब हो गयी ! खुद के शौक से एक समझोता कर लिया ! शुकुन मन से बहुत दूर था ! फिर लगे रहे के बाद एक जॉब मिली ! घर से निकलते और ऑफिस मे पहुचने का रास्ता मन मे लिखने के प्रति विचार चलता रहता फिर मैने अपने शौक पे काम करने लगी ! जो खुद भूल बैठी इन ऊची मिनारों मे ! खुद से गहरा रिश्ता मैने बना लिया ! जो काहानिया कॉलेज ओर ऑफिस मे groups बनाते कही खो गयी थी ! कही उनको पा लिया ! तुम्हारी तालाश तुम से ही हैं इस दूनिया के मेले मे अपना अस्तित्व खोने की गलती मत करो ! तो हम अपनी तालाश मे चले खुद की अलग पहचान writing found me #peace