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#सिंगल_औरतें हमारी पीढ़ी की बहुता

#सिंगल_औरतें
                 हमारी पीढ़ी की बहुतायत औरतें वर्तमान में  सिंगल रहने का चुनाव 
कर रही हैं और उनके इस निर्णय का स्वागत भी हो रहा है...
         हालांकि सवाल ये है कि,  प्रौढ़ावस्था में स्त्रियां क्यों मजबूर हो रही हैं सिंगल रहने के लिए  ?
 यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्वलंत विषय है ।

           सोचिए जो स्त्रियां अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा दूसरे की देखभाल,
सेवा और सुरक्षा में बिता देती हैं उन्हें जब सहायता, सुरक्षा और देखभाल की जरूरत
 होती है तो उनके आत्मसम्मान पर प्रहार किया जाता है उनके स्वाभिमान को ललकारा 
जाता है और इसतरह का माहौल तैयार किया जाता है कि वह स्वयं निर्णय ले ले कि
 उसे अब खुद के लिए खुद के सम्मान और स्वाभिमान के लिए जीना है और अब
 अकेले ( सिंगल )  ही रहना है ।
अपनों से मिले प्रताड़ना और विश्वासघात उन्हें जीवन में फिर से किसी पर भरोसा
 करने के लायक नहीं छोड़ता और स्त्रियां खुद पर भरोसा कर सिंगल रहने का चुनाव 
करती हैं क्योंकि इसके अलावा एक उम्र में आकर एकमात्र विकल्प यही बचता है 
उनके पास ।
             ग़लत नीतियों का विरोध करने के क्रम में स्त्रियों को सबसे पहले खुद 
 को अकेला करना पड़ता है और ताउम्र अकेलेपन को झेलने के लिए खुद को
 शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर तैयार करना पड़ता है।

ये वही समाज और परिवार है जो स्त्रियों को देवी बनाकर  पूजता है और पत्थर
 का समझता है (भावना विहीन )।

           नोट : आगामी आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाएगा महिला 
सशक्तिकरण के बारे में बड़ी-बड़ी बातें होंगी, संगोष्ठियां होगी, आयोजन होंगे 
लेकिन सच्चाई यह है कि इस दौर में महिलाओं का सिंगल रहना  भी एक 
ऐसी तस्वीर है जिसके बिना महिला सशक्तिकरण अधूरा है ...

©पूर्वार्थ
  #singlewomen