बिखरा पड़ा हूँ सुलझा दे ख़ुदा तन्हा जला हूँ बुझा दे ख़ुदा अपनों ने छोड़ा , है अंदर से तोड़ा मेरे साये को है ख़ूब निचोड़ा आँखों के दर्या को सुखा दे ख़ुदा बिखरा पड़ा हूँ.............. दिन का उजाला अब चुभता सा रहता तेरा न कोई अब दिल भी है कहता अँधेरों की जन्नत लुटा दे ख़ुदा बिखरा पड़ा हूँ ........ बताऊँ किसे हूँ कितना मैं टूटा मरहम ये 'जस' का है लफ़्ज़ों में फूटा बाकी जो खुशियाँ छुपा दे ख़ुदा बिखरा पड़ा हूँ....... बिखरा पड़ा हूँ सुलझा दे ख़ुदा तन्हा जला हूँ बुझा दे ख़ुदा अपनों ने छोड़ा , है अंदर से तोड़ा मेरे साये को है ख़ूब निचोड़ा आँखों के दर्या को सुखा दे ख़ुदा बिखरा पड़ा हूँ..............