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आँखों ही आँखों में इश्क लड़ाने आते हैं। वो मुहब्ब

आँखों ही आँखों में इश्क लड़ाने आते हैं। 
वो मुहब्बत हमसे बेइंतेहा जताने आते हैं।

सुर - ताल से तो कोई राब्ता नहीं है उनका, 
फिर भी हमें रिझाने को गुनगुनाने आते हैं।

यूं तो हम उन्हें हर लिबास में अच्छे लगते हैं, 
फिर भी दुल्हन - सा वो हमें सजाने आते हैं।

बेरूखी भी कमाल की है हमारे महबूब की,
 न मिलने के भी उन्हें हजारों बहाने आते हैं।

हर "गीत" ग़ज़ल में लिखकर के नाम उनका, 
हम अपने रूठे हुए महबूब को मनाने आते हैं।

©Sneha Agarwal 'Geet'
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