प्रेम की परिभाषा प्रेम की परिभाषा को मैं न जानूं, पर इसकी शक्ति को ही पहचानूं। बिगड़ों को भी जो सुधारे प्रेम से, उसी प्रेम को ही मैं स्वयं में धारूं। प्रेम भाव से सबसे मिलूं मैं , उसी से ही सराबोर रहूं मैं। दिव्यता भी है उसमें अदभुत, उसका सदैव आभारी रहूं मैं। कई रिश्तों से ही जुड़ा है ये, सबसे मिला अलग नाम है ये। किस किस नाम से इसे पुकारें, सभी नामों में ही समाया है ये। ईश्वर का भी संदेश यही है, प्रेम में समाया ही वही है। प्रेम से नहीं कभी मुख मोड़ो, जीवन का सरताज यही है। गुरु से जुड़े तो ईश्वर मिल जाए, ईश्वर से जुड़े भक्ति मिल जाए। सबका ही अपना एक नाता है, उससे जुड़े तो स्वर्ग मिल जाए। ............................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #प्रेम_की_परिभाषा #nojotohindi प्रेम की परिभाषा प्रेम की परिभाषा को मैं न जानूं, पर इसकी शक्ति को ही पहचानूं। बिगड़ों को भी जो सुधारे प्रेम से, उसी प्रेम को ही मैं स्वयं में धारूं।