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ग़ज़ल तुम आओ मेरे दिल के गाँव मे, रखुंगा तुम्हे पलक

ग़ज़ल

तुम आओ मेरे दिल के गाँव मे,
रखुंगा तुम्हे पलको की छाँव मे।

छू न ले हवा का इक कतरा भी
कोई कांटा ना चुभे, तेरे पाँव मे।

तेरी हर शर्त है मंजूर मुझे मगर,
चाहे हारना ही पड़े मुझे दाँव मे।

डूबना तो मुमकिन है समुन्द्र मे,
जब हो जाऐ कोई छैद, नाँव मे।

सहरा मे आ के तुम देखो सही
पाओगी तुम शज़र की छाँव मे।

तुम बिन तन्हा है, शायर "जैदि"
कभी रखो ना कदम मेरे ठांव मे।

शायर:-"जैदि"
एल.सी.जैदिया "जैदि"

©एल.सी.जैदिया "जैदि" ग़ज़ल

तुम आओ मेरे दिल के गाँव मे,
रखुंगा तुम्हे पलको की छाँव मे।
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छू न ले हवा का इक कतरा भी
कोई कांटा ना चुभे, तेरे पाँव मे।
ग़ज़ल

तुम आओ मेरे दिल के गाँव मे,
रखुंगा तुम्हे पलको की छाँव मे।

छू न ले हवा का इक कतरा भी
कोई कांटा ना चुभे, तेरे पाँव मे।

तेरी हर शर्त है मंजूर मुझे मगर,
चाहे हारना ही पड़े मुझे दाँव मे।

डूबना तो मुमकिन है समुन्द्र मे,
जब हो जाऐ कोई छैद, नाँव मे।

सहरा मे आ के तुम देखो सही
पाओगी तुम शज़र की छाँव मे।

तुम बिन तन्हा है, शायर "जैदि"
कभी रखो ना कदम मेरे ठांव मे।

शायर:-"जैदि"
एल.सी.जैदिया "जैदि"

©एल.सी.जैदिया "जैदि" ग़ज़ल

तुम आओ मेरे दिल के गाँव मे,
रखुंगा तुम्हे पलको की छाँव मे।
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छू न ले हवा का इक कतरा भी
कोई कांटा ना चुभे, तेरे पाँव मे।

ग़ज़ल तुम आओ मेरे दिल के गाँव मे, रखुंगा तुम्हे पलको की छाँव मे। =================== छू न ले हवा का इक कतरा भी कोई कांटा ना चुभे, तेरे पाँव मे। #शायरी #makarsakranti