ग़ज़ल मेरे आंसू ठहरते ही नहीं आँखों के आँगन में कभी निकल आँखों से वो सीधे रूह में समा जाते है होश नहीं रहता इन्हे की बहना है या नहीं इसकदर अक्सर हमारे दिलबर हमें याद आते हैं एक उम्र काटनी है तन्हा लबो पे मुस्कुराहट लिए यही सज़ा देने को वो हमें मुजरिम बताते है साँसे तो लेते हैं पर आक्सीजन की कमी रहती है कुछ इसकदर वो हमें मजबूरी में जीना सिखाते हैं सम्बन्ध जो हमसे है उनका बस वही भुलाये बैठे है बाकी सारी दुनिया को वो अपना सम्बन्धी बताते है प्यार से मांग ले तो जान हथेली पे रख देगी रोमी फ़िरभी न जाने क्यों वो हमारा प्यार आजमाते है रोमी की कलम से..... #Barrier #Pain #इंतिजार