ये मुहब्बत नहीं एबादत है अश्क आखों में इनायत है लब पे शिकवा नहीं है मेरे अजब-गज़ब तेरी चाहत है एक न एक दिन मैं मिलूंगा इस सोंच में कितनी लज्ज़त है ठहर जाओ कुछ घड़ी,चलूंगा नये कपड़े पहन,कुछ इज्ज़त है दिल में बेताबी है मिलन की ये बेताबी भी तेरी रहमत है नहाकर खुशबू लगाना है मुझे ये बस दो घडी़ की फुर्सत है ©Qamar Abbas #mohabbathai