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परिवार दिवस के उपलक्ष्य में -कुण्डलिया छंद- 1- जीव

परिवार दिवस के उपलक्ष्य में
-कुण्डलिया छंद-
1-
जीवन में अनिवार्य है, सबको ही परिवार।
टूट रहे यह आज क्यों, इस पर करें विचार।।
इस पर करें विचार, हुए क्यों हम एकाकी।
अपने में  ही  मस्त, न  कोई  रिश्ते  बाकी।।
मुश्किल हो आसान, सुरक्षा  रहती  मन में।
देते  हैं  परिवार, हमें  सब कुछ  जीवन में।।
2-
कैसे  रहते  थे  भला,  तब  सारे  संयुक्त।
अब तो होना चाहते, सभी सभी से मुक्त।।
सभी सभी से मुक्त, कहाँ के  दादा-दादी।
हुए आज माँ-बाप, अकेलेपन के आदी।।
किस्से सुनकर लोग, करेंगे अचरज ऐसे।
रहते  थे  संयुक्त, लोग  जो  थे  वे  कैसे।।
#हरिओम श्रीवास्तव#

©Hariom Shrivastava #friends
परिवार दिवस के उपलक्ष्य में
-कुण्डलिया छंद-
1-
जीवन में अनिवार्य है, सबको ही परिवार।
टूट रहे यह आज क्यों, इस पर करें विचार।।
इस पर करें विचार, हुए क्यों हम एकाकी।
अपने में  ही  मस्त, न  कोई  रिश्ते  बाकी।।
मुश्किल हो आसान, सुरक्षा  रहती  मन में।
देते  हैं  परिवार, हमें  सब कुछ  जीवन में।।
2-
कैसे  रहते  थे  भला,  तब  सारे  संयुक्त।
अब तो होना चाहते, सभी सभी से मुक्त।।
सभी सभी से मुक्त, कहाँ के  दादा-दादी।
हुए आज माँ-बाप, अकेलेपन के आदी।।
किस्से सुनकर लोग, करेंगे अचरज ऐसे।
रहते  थे  संयुक्त, लोग  जो  थे  वे  कैसे।।
#हरिओम श्रीवास्तव#

©Hariom Shrivastava #friends