भारी मन से मैं हंसना चाहता हूं &&&&&&&&&&&&&&&& झूठ और फरेब से जगमगाती दुनिया में, भारी मन से मैं हंसना चाहता हूं।। आभास हुई है मुझे कहीं तन्हाई में, आंसुओं की धार अब आंखों से नहीं, दिल से निकलना चाहता हूं।। सोचा धर दूं दो हांथ अपनी सोच पर, कुछ पल बाद एक रहस्यमई आवाज आई, तू अधीर मत हो..............., मैं कुछ पल सुकून से जीना चाहता हूं। झूठ और फरेब से जगमगाती दुनिया में, भारी मन से मैं हंसना चाहता हूं।। बेशुद्ध पड़ा है ज्ञानियों की दृष्टि, कल्पना भी अब अभिशप्त हो चुका है। रहम करो तुम कलपती सुनहरी धरती पर, मैं मालाकार हकीकत को पुकारा चाहता हूं। झूठ और फरेब से जगमगाती दुनिया में, भारी मन से मैं हंसना चाहता हूं।। &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& प्रमोद मालाकार कि पेशकश...09.07.2017 ©pramod malakar #भारी मन से मैं हंसना चाहता हूं।