रचना दिनांक २७,,,१०,,२०२३ वार शुक्रवार समय ््शाम चार बजे शीर्षक ्् शीर्षक छाया चित्र में भावचित्र प्रेम कविता,, प्यार का वटवृक्ष नवजीवन में गगन निहारती सूर्य रश्मि प्रभा तेज प्रभात की।। स्वछंद विचरण में टहलती कोमल सी नवयोवना जीवन मंत्र शक्ति से सम्बलता से देख गगन की ओर इस आधुनिक युग में महिला सशक्तिकरण वंदन पर,, वर्तमान का आत्ममंथन जूमला सा प्रतीत होता है।। जो भूलकर भी सूक्ष्म रूप से,, अपनी रूह मे खो कर रुह में समाता चला गया।। चंद खुशिया लेकर चलते रहो जमाने से प्रेरणा लेकर आगे बढती मेरी सफल कामयाबी,, दिल के मनो भाव से प्रेम का श्रंगार बिछौना बिछाकर प्यार करने लगी ,, मैं याद आ रही भावना नजर से खोज रही।। भावना नजर से तुम एक बार मिलती अपने प्रियतम से,, अधर पर प्रेम का रस विभोर कर रही थी ।। तेरी प्यारी सी वो छबि मैं गगन को देख निहारती रही तेरे इन्तजार में ,, ्््भावचित्र मैं एक बार मिलती प्रेम की वो तस्वीर मे।।, तब्दील हो गई तस्वीर इस आंनद की,, बस खोजती रहती है मेरी नज़र की तन्हाइयों में।। ्््््कवि शैलेंद्र आनंद ््् २७अक्टूम्बर २०२३ में एक बार मिलती ©Shailendra Anand #sadak छाया चित्र में भावचित्र प्रेम और सौंदर्य रुप प्राकृतिक सौंदर्यता बिखेरती नजर में।।