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Village Life पल्लव की डायरी अतीत हमारे सीमित आनन्

Village Life  पल्लव की डायरी
अतीत हमारे सीमित
आनन्द मन मे झाँका करता था
ताना बाना समाजिक हुआ करता था
डर और भय से परंपरा जीवित रहती
सहयोग लेना देना भावना का भाव रहता था
कम संसाधन भले रहते
जुड़ाव और प्रेम बे जोड़ रहता था
मगर वैश्विक बाजारवाद के अधीन होकर
उजड़े गांव शहर आबादी के बोझ से कराहते है
सब का राजनीतिक करण हो गया
सियासतो के हाथों हमारे सुख चैन छिने जाते है
डिप्रेशन में हम सब पगलाये जाते है
                                                प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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