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उठो सवेरा नवल हुआ है, किंचित था अब प्रबल हुआ है ।


उठो सवेरा नवल हुआ है, किंचित था अब प्रबल हुआ है ।
नभ के तारे जाने को है, सूर्य हृदय हर्शाने को है ।
ओझल होते सपनों का फिर से दीपक जल जाने को है ।।

उठो गगन है इन्तज़ार में, भर दो इसकी ख़ुशहाली ।
रहो सजग की देर ना हो, कोई दीप ना हो ख़ाली ।।
उजियारा फैला के तुम, जग का अँधियारा दूर करो ।
आज समय बलवान बड़ा अपनी अभिलाषा पूर्ण करो ।।
संकल्प करो कुछ करना है, और अम्बर पर तुम छा जाओ ।
सूरज के किरणों सा चहुमुख अपने यश को बिखराओ ।।

सब कुछ तुममें कमी नहीं कुछ, अपने बल को पहचानो ।
हर सपना पूरा होगा बस करने की इक ज़िद ठानो ।।
पाँव पटक कर धरती पर तुम अपना परिचय बतला दो ।
क्या हो तुम, क्या करने आए, अपनी मंशा बतला दो ।।
है सार यही इस जीवन का, कि कर्मों का फल मिलता है ।

गहरे मिट्टी में दब के ही वृक्ष विशाल निकलता है ।।
मतवाला होकर तुम अपने भाग्य का हाथ पकड़ निकलो ।
कल पे आज को छोड़े क्यों तुम आज ही भाग्य बदल निकलो ।।
इतिहास गवाह है वीरों की ही गाथा गायी जाती है ।
काम बड़ा करने वालों की ही नाम सुनायी जाती है ।।

सिंह बनो तुम हासिल कर लो अपने मन की मृगक्षाला ।
लड़ो की जय अब दूर नहीं है, पहन लो जीत की जयमाला ।।
यूँ ही जय-जयकार नहीं होता, तिनकों का श्रिंगार नहीं होता ।
जग की रीत बड़ी निष्ठुर, बिन जीते जयकार नहीं होता ।।

हारा वही जो मन से हारा, हार पे हँसता ये जग सारा ।
हार से तुम यूँ ना घबराओ, वीर हो तुम बस बढ़ते जाओ ।।
हँसा जगत हर उस महान पर जिसने सोचा काम बड़ा ।
वहि जगत गुणगान करे है, जब मिला उसे सम्मान बड़ा ।।
विजय न जाने रंग-रूप को, विजय न जाने काया ।

जीवन मिलता हर उस बीज को, जिसमें अंकुर आया ।।
जगो की सपने खो ना जाए, भाग्य के पंछी सो ना जाए ।
उठो चलो निज भाग्य लिखो, नित नया महाकाव्य लिखो ।
फिर ये दिन ना आयेंगे, भौंरे हैं उड़ जायेंगे ।

सोचो नहीं अब बढ़ चलो कुछ डगर का है फ़ासला ।
मंज़िल उन्ही को मिलती है जिनमें ग़ज़ब का हौसला ।।
हौसलों से तन के लाल हुआ नभ, इंद्रधनुष फिर छाने को है ।
ओझल होते सपनों का फिर से दीपक जल जाने को है ।।

©पूर्वार्थ
  #सपने_देखना_जरूरी_है