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कितने युग बीत गए प्रेम अब भी वहीं हैं वैसे हि अल्ल

कितने युग बीत गए
प्रेम अब भी वहीं हैं
वैसे हि अल्लड़ एकाकी है
उसने कितने चेहरे देखें है
कितने हिदय में रहें है
किन्तु प्रेम यथावथ रहा है
उसे ना समय मार सका है
ना धरा निगल सकी है
प्रेम सरिता में बहता है
किन्तु वह भी ना उड़ा सकी है
प्रेम आज भी उसी भाती है
क्षतिज में खेलता है
मध्यम में बहता है
किंतु किसी के वश में नही रहता

©Kavitri mantasha sultanpuri #प्रेम_रचना 
#KavitriMantashaSultanpuri
कितने युग बीत गए
प्रेम अब भी वहीं हैं
वैसे हि अल्लड़ एकाकी है
उसने कितने चेहरे देखें है
कितने हिदय में रहें है
किन्तु प्रेम यथावथ रहा है
उसे ना समय मार सका है
ना धरा निगल सकी है
प्रेम सरिता में बहता है
किन्तु वह भी ना उड़ा सकी है
प्रेम आज भी उसी भाती है
क्षतिज में खेलता है
मध्यम में बहता है
किंतु किसी के वश में नही रहता

©Kavitri mantasha sultanpuri #प्रेम_रचना 
#KavitriMantashaSultanpuri