कितने युग बीत गए प्रेम अब भी वहीं हैं वैसे हि अल्लड़ एकाकी है उसने कितने चेहरे देखें है कितने हिदय में रहें है किन्तु प्रेम यथावथ रहा है उसे ना समय मार सका है ना धरा निगल सकी है प्रेम सरिता में बहता है किन्तु वह भी ना उड़ा सकी है प्रेम आज भी उसी भाती है क्षतिज में खेलता है मध्यम में बहता है किंतु किसी के वश में नही रहता ©Kavitri mantasha sultanpuri #प्रेम_रचना #KavitriMantashaSultanpuri