ये भी कोई उम्र थी भला तुम्हारे जाने की, पहल तो की होती गिले-शिक़वे बताने की। पिता को भी अकेला छोड़ गए तुम 'सुशांत', साँसें ही रोक दी तुमने पूरे ज़माने की। --सोमेश r.i.p