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चाह नहीं की बुत बनकर चौक शहर लग जाऊँ कहीं ख्वाहिश

चाह नहीं की बुत बनकर चौक शहर लग  जाऊँ कहीं
ख्वाहिश है की खुश्बू बनकर फिजाओं घुल जाऊँ कहीं
जब भी कभी बात हो मेरे शहर की कहीं जहां में "माधव"
दिल में धड़कन ,  ओंठो की हंसी    बन दिख जाऊँ वहीं
मुक्कमल ख्वाब के अल्फ़ाज़ के हर हर्फ़ का हिस्सा रहूँ
अहम है हिंदुस्तान के माथे की बिंदी सा सज जाऊँ कहीं।


#माधवेन्द्र फैज़ाबादी
चाह नहीं की बुत बनकर चौक शहर लग  जाऊँ कहीं
ख्वाहिश है की खुश्बू बनकर फिजाओं घुल जाऊँ कहीं
जब भी कभी बात हो मेरे शहर की कहीं जहां में "माधव"
दिल में धड़कन ,  ओंठो की हंसी    बन दिख जाऊँ वहीं
मुक्कमल ख्वाब के अल्फ़ाज़ के हर हर्फ़ का हिस्सा रहूँ
अहम है हिंदुस्तान के माथे की बिंदी सा सज जाऊँ कहीं।


#माधवेन्द्र फैज़ाबादी