ये भी कैसी है सोच आदमी की जो दुखों को बांटने क़े लिए सदैव तैयार रहता है जबकिसुखों को बांटने क़े बजाय उनका संग्रह करता है ताकि दूसरों को अपने से छोटा साबित कर सके अपनी दिनचर्या का अधिकतम समय वो सुख संग्रह करने मे गुज़ार देता है.. लेकिन ज़ब कभी दूसरों क़ेलिए कुछ करना हो तो अपना मुँह फेर लेता है और वो शायद ये भी भूल जाता है क़ि सुखों और खुशियों का अहसास तभी होता है ज़ब वोदुख और पीड़ा का पहले ज़ायज़ा ले चुका हो ©Parasram Arora स्वार्थपरता.......