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गम भर के गम थे अफ़साने फिर भी बहुत कम थे मोहब्बत

गम भर के गम थे
अफ़साने फिर भी बहुत कम थे

मोहब्बत को दो घुट मे भूलने
 जो निकले 

अब क्या कहे "साहब" 

शहर मे "मैखाने" भी
बेदम थे

©चाँदनी
  #गम

#गम

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