तुम गिरने दो मुझको आज, कल मैं फिर खड़ा हो जाऊँगा बहुत दर्द है बचपन की गलियों में अब मैं बड़ा हो जाऊँगा इल्तिजा बहुत हो गयी उस पत्थर दिल पत्थर की मूर्ति से तुम देखना ख़ुदा की ख़ुदाई में कल मैं भी ख़ुदा हो जाऊँगा उस्ताद बुहत होंगे रेख़्ता के गालिब मुझे परवाह नही उनकी रूह ने ना तोड़ा मुझे तो इक दिन मैं भी रेख़्ता हो जाऊँगा आहिस्ता-आहिस्ता ख़ुद के जेहन में खुद आफ़ताब बन आऊँगा इबरत इत्तेफ़ाक भी हुआ, मैं खुद ब खुद खुदका आईना हो जाऊँगा काँपते हाथ है काँपता लब मेरा अब आवाज़ में कंपकंपी है तुम देखना कायनात की लब पर मैं इक लहज़ा हो जाऊँगा बहुत शिद्दत से मिटाने की कोशिश कर रहे हो तुम आज चाहो तो मिटा लो कल मैं भी पत्थर का निशाँ हो जाऊँगा अगर तुम चार अल्फाज़ मेरे पास लाओगे गुफ़्तगू के लिये तो मेरा वीराना शहर गुलशन और मैं तेरा मकाँ हो जाऊँगा ~©Anuj Subrat #Bhut_Dard_hai_bachpan_ki #_galiyon_me @Anuj Subrat