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#वैभव संस्कृति की (1) सिद्धार्थ हे वीणावादिनी मुझ

#वैभव संस्कृति की (1)
सिद्धार्थ 
हे वीणावादिनी मुझको अभी अभिभूत कर
यह लेखनी मद्धिम न हो वाणी भी अद्वैत कर
मैं खड़ा लिख रहा इतिहास के कंकाल से
बच ना पाया कोई यह, स्याही के जंजाल से
कर जोड़े तेरे सामने , खड़ा है वेद वक्ता यहाँ
अकबर और अशोक भी, ले खड़े सत्ता यहाँ
मेरा अभिप्राय बस यही, क्यों वेद संस्कृति घट रही 
अब यहाँ सीता नही, धरा भी ना फट रही,
प्रसिद्धि दूर तक फैली हुई, चहुँओर हमारा गुणगान था,
विश्व मे चिर संध्या हमारी , अपना ही विहान था।।।
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©siddharth vaidya #alone
#वैभव संस्कृति की (1)
सिद्धार्थ 
हे वीणावादिनी मुझको अभी अभिभूत कर
यह लेखनी मद्धिम न हो वाणी भी अद्वैत कर
मैं खड़ा लिख रहा इतिहास के कंकाल से
बच ना पाया कोई यह, स्याही के जंजाल से
कर जोड़े तेरे सामने , खड़ा है वेद वक्ता यहाँ
अकबर और अशोक भी, ले खड़े सत्ता यहाँ
मेरा अभिप्राय बस यही, क्यों वेद संस्कृति घट रही 
अब यहाँ सीता नही, धरा भी ना फट रही,
प्रसिद्धि दूर तक फैली हुई, चहुँओर हमारा गुणगान था,
विश्व मे चिर संध्या हमारी , अपना ही विहान था।।।
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©siddharth vaidya #alone