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याद आता है अक्सर वो अपना मुफ़लिसी भरा गाँव जहाँ हर

याद आता है अक्सर वो अपना मुफ़लिसी भरा गाँव
जहाँ हर आदमी ज़रूरत नहीं फुर्सत से मिलता है ,
निश्छलता तो गांव की मिट्टी में ही बसी "निश्छल"
जहाँ हैल्लो नहीं पाँव लागी से आशीष मिलता हैं,
होंगें शहर तेरी महफ़िल में हज़ारों सराय मस्ती के
सुकूँ तो पेड़ के नीचे पड़ी चारपाई पे ही मिलता है
तहज़ीब तो हमारे गाँव की सरजमीं में ही बसी है
जहाँआँचल फटा ही सही सर पे रखा मिलता है,
©️किसलय कृष्णवंशी"निश्छल"
याद आता है अक्सर वो अपना मुफ़लिसी भरा गाँव
जहाँ हर आदमी ज़रूरत नहीं फुर्सत से मिलता है ,
निश्छलता तो गांव की मिट्टी में ही बसी "निश्छल"
जहाँ हैल्लो नहीं पाँव लागी से आशीष मिलता हैं,
होंगें शहर तेरी महफ़िल में हज़ारों सराय मस्ती के
सुकूँ तो पेड़ के नीचे पड़ी चारपाई पे ही मिलता है
तहज़ीब तो हमारे गाँव की सरजमीं में ही बसी है
जहाँआँचल फटा ही सही सर पे रखा मिलता है,
©️किसलय कृष्णवंशी"निश्छल"