हे माँ तेरी हर बात याद है, जो तुमने बतलाई मुझे,, एक चूक तुमसे भी हुई माँ, ना अपनो की पहचान करवाई मुझे,, कैसे अपनो की नियत परखूं , ये सीख ना सिखाई मुझे,, कौन कैसे छूता-देखता, लोगों की नजरें ना समझ आई मुझे,, वो कौन चाचा थे जो अकेले में, मेरे मुंह पर हाथ रख दिया करते थे,, सबके सामने लाड लङाते और, बात बेटी बेटी कहकर किया करते थे,, पीङा उत्पीड़न की सह ना पाई मैं, चीखकर भी हे माँ चिलहा ना पाई मैं,, कैसे किसको ये सब बतलाऊं डर के मारे, चाहकर कर भी अपनी जीभा हिला ना पाई मैं,, लङकी हैं और अगर सुन्दर हैं , कोई चीज तो नहीं भोग- विलाश की,, आखिर कब तक होती रहेगी, यूं ही मृत्यु हमारे रिश्तों पर विश्वास की,, हे माँ तेरी हर बात याद है, जो तुमने बतलाई मुझे,, एक चूक तुमसे भी हुई माँ, ना अपनो की पहचान करवाई मुझे,, कैसे अपनो की नियत परखूं , ये सीख ना सिखाई मुझे,, कौन कैसे छूता-देखता, लोगों की नजरें ना समझ आई मुझे,,