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mast malang

हे माँ तेरी हर बात याद है, जो तुमने बतलाई मुझे,, एक चूक तुमसे भी हुई माँ, ना अपनो की पहचान करवाई मुझे,, कैसे अपनो की नियत परखूं , ये सीख ना सिखाई मुझे,, कौन कैसे छूता-देखता, लोगों की नजरें ना समझ आई मुझे,, #उत्पीड़न #हे_माँ

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हे माँ तेरी हर बात याद है,
जो तुमने बतलाई मुझे,,
एक चूक तुमसे भी हुई माँ,
ना अपनो की पहचान करवाई मुझे,,
कैसे अपनो की नियत परखूं ,
ये सीख ना सिखाई मुझे,,
कौन कैसे छूता-देखता,
लोगों की नजरें ना समझ आई मुझे,,
वो कौन चाचा थे जो अकेले में,
मेरे मुंह पर हाथ रख दिया करते थे,,
सबके सामने लाड लङाते और,
बात बेटी बेटी कहकर किया करते थे,,
पीङा उत्पीड़न की सह ना पाई मैं, 
चीखकर भी हे माँ चिलहा ना पाई मैं,,
कैसे किसको ये सब बतलाऊं डर के मारे, 
चाहकर कर भी अपनी जीभा हिला ना पाई मैं,,
लङकी हैं और अगर सुन्दर हैं ,
कोई चीज तो नहीं भोग- विलाश की,,
आखिर कब तक होती रहेगी, 
यूं ही मृत्यु हमारे रिश्तों पर विश्वास की,,
 हे माँ तेरी हर बात याद है,
जो तुमने बतलाई मुझे,,
एक चूक तुमसे भी हुई माँ,
ना अपनो की पहचान करवाई मुझे,,
कैसे अपनो की नियत परखूं ,
ये सीख ना सिखाई मुझे,,
कौन कैसे छूता-देखता,
लोगों की नजरें ना समझ आई मुझे,,

Pragya Ratan Shrivastava

#अत्याचार #विवाह #उत्पीड़न #स्त्री #स्त्रीधर्म nojoto #nojotohindi #kavyashala #Poetry सिंदूरी माँग ,हाथों में चूड़ी, पीहर छोड़ यूँ मैं पिया से जुड़ी। अरमानों की डोली में हुई विदा, होकर अपने नसीब पर फ़िदा। स्वप्नलोक से जब धरती पे आई, ठोकर खाकर हक़ीक़त समझ मुझे आई।। #कविता

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सिंदूरी माँग ,हाथों में चूड़ी,
पीहर छोड़ यूँ मैं पिया से जुड़ी।
अरमानों की डोली में हुई विदा,
होकर अपने नसीब पर फ़िदा।
स्वप्नलोक से जब धरती पे आई,
ठोकर खाकर हक़ीक़त समझ मुझे आई।।
कन्यादान कर माँ- बाप हुए मुक्त,
अत्याचार को पिया उन्मुक्त।
माँ ने नसीहत दी पत्नी धर्म निभाना,
दिखाकर संस्कार कुल का मान बढ़ाना।
शुरू हुआ यूँ अत्याचार का नया फ़साना,
हर दिन बढ़ा सास का तिरस्कार दिखाना।
तन के ज़ख्म कुछ देखे सभी ने,
मन के घाव क्या जाने किसी ने ?
समाज में झूठे शान और मान की खातिर,
मैं घुटती रही और तड़पाते रहे वो शातिर।
वो शोषण की हर सीमा लाँघ गये,
मेरे सब्र का बांध तोड़ गये।
रख लिया मान मैंने पीहर का,
देकर अपने प्राण की आहुति।
जब साथ निभाया नहीं किसी ने,
अब जताना मत कोई सहानुभूति।
निभाया धर्म  मैंने हर रिश्ते का,
पर ना हुए तृप्त ये लिंगभेदी।
उन सात वचनों की थी संवेदी ,
चढ़ गई आज एक और बेटी बलिवेदी ।।
मान रख पाओ ना ग़र बेटी का,
तो भ्रूणहत्या ही सही।
ऐसे ज़ालिम दुनिया में रहने से,
मैं अजन्मी रहूँ ,यही सही।। #अत्याचार #विवाह #उत्पीड़न #स्त्री #स्त्रीधर्म #nojoto #nojotohindi #kavyashala #poetry 

सिंदूरी माँग ,हाथों में चूड़ी,
पीहर छोड़ यूँ मैं पिया से जुड़ी।
अरमानों की डोली में हुई विदा,
होकर अपने नसीब पर फ़िदा।
स्वप्नलोक से जब धरती पे आई,
ठोकर खाकर हक़ीक़त समझ मुझे आई।।


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