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छीन कर अस्तित्व उसका जाने कौन सी पहचान देते है, ब

छीन कर अस्तित्व उसका जाने कौन सी पहचान देते है, 
बजाके ढोल ताशे, जाने किस खुशी की परंपरा निभाते है । 

मां की लोरियों की जगह को सास के तानों से भरते है, 
बाबुल का आंगन छीन उसको छत पराया देते है 
बजाके ढोल ताशे, जाने किस खुशी की परंपरा निभाते है । 

मायके की चहचहाहट को कमरों की सिसकियों में बदलते है, 
उसकी आजादी की सासों को घुटन में बदल देते है 
बजाके ढोल ताशे, जाने किस खुशी की परंपरा निभाते है । 

बिना कुछ उम्मीद किए दामाद को सर पे बिठाते है 
पूरे दिन सबका ख्याल रखने वाली बहु के हाथ बस आसूं आते है
 बजाके ढोल ताशे, जाने किस खुशी की परंपरा निभाते है । 

कभी चुप ना रहने वाली, चिल्लाने वाली को सब सहना सिखाते है, 
उसकी आजादी, उम्मीदें, खुशियों का गला खोंट ना जाने क्या रस्म निभाते है ।बजाके ढोल ताशे, जाने किस खुशी की परंपरा निभाते है ।

©awantika
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