कहाँ हो ?? छत पर हूं , तुम ?? मैं भी , सामने क्या दिख रहा है ? चाँद और उस चाँदनी में तुम्हारा अक्स देखो न ये भी तुम्हारी तरह प्रेम से मुझे ताक रहा है जानती हो जब भी चाँद देखता हूं तो उस में से तुमारी आँखे झांकती प्रतीत होती हैं जो मेरे अंदर कहीं गहरे उतर जाती हैं सुनो, तुम्हे क्या दिख रहा है ??? बादल का एक टुकड़ा ,जो हर पल बरसता है मुझ पे तुम्हारा प्यार बन कर जानते हो चाँद तो रात का साथी है और ये बादल कड़ी धूप में मुझे छाया देता है जब भी थक जाती हूं न एक साया बन मुझ पर तन जाता है,,,, जो छुपा लेता है मुझे हर ताप से , इसकी छाया में जो सकूं है न वो चाँद की रोशनाई में भी नहीं,,, बादल ही तो हो तुम ,,,,,,!!!!