ये जो कुछ भी है भ्रम लगता है, आने जाने का क्रम लगता है। बड़े बड़े तूफानों ने समय को शीष झुकाया है, जो झुके नहीं वे बीत गए हर समय ही ये समझाया है। सावन ने सोचा कब होगा ये नवांकुर मुरझाएंग, पतझड़ को क्या अंदाजा होगा फिर नए पुष्प भी आयेंगे। तारीखों का खेल बड़ा पेचीदा है, समय का आना जाना भी संजीदा है। हो नया जा कुछ इसमें तुम मुझको बतलाओ, जो समझ ना पाता हूं तुम मुझको समझाओ। जब सब कुछ वैसा चलता है, नित भोर हुई नित दिन ढलता है। फिर कैसा हर्ष मनाऊ मै , क्यों मंगल गीत सुनाऊं मैं, जो कुछ भी है सब भ्रम लगता है, आने जाने का क्रम लगता है। #अभिषेक यादव जो कुछ भी है भ्रम लगता है।