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दिल की जमीं पर चंद प्रेम बीज बो जरा इसे गुनगुना कर

दिल की जमीं पर चंद प्रेम बीज बो जरा इसे गुनगुना कर तो देखो.....

आ जाना
*****
जब प्रेम का सावन बरसेगा,
प्रियतम तुम घर आ जाना वे,
जब ग्रीवा ग्रीष्म में तरसेगा,
प्रियतम तुम घर आ जाना वे।

हूँ दूर बहुत,देखूँ अपलक,
तू आ, मुझको समझना वे
ढल रहा मेरा,यौवन मोती
आ,हारों में गूथ जाना वे,
जब प्रेम का ........

दे शरद मुझे,कांटों का चुभन
तुम मुझको अंक लगाना वे
हो,मस्त बसंत,पपीहा बोले
तुम प्रीत, गीत दुहराना वे
जब प्रेम का.........

जब पतझड़ में पत्ते न हो,
तुम फूल कोई, चुन लाना वे
होले से चुम कपोलों को
मेरे बालों में लगाना वे..

मौसम का क्या?भरमाएगा
न कभी दूर तुम, जाना वे
ये सांसें,ये धड़कन मेरी
न कभी इसे तड़पना वे

जब प्रेम का सावन बरसेगा
प्रियतम तुम घर आ जाना वे
जब ग्रीवा ग्रीष्म में तरसेगा
प्रियतम तुम घर आ जाना वे
जब.........2

दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़""" #आ जाना
दिल की जमीं पर चंद प्रेम बीज बो जरा इसे गुनगुना कर तो देखो.....

आ जाना
*****
जब प्रेम का सावन बरसेगा,
प्रियतम तुम घर आ जाना वे,
जब ग्रीवा ग्रीष्म में तरसेगा,
प्रियतम तुम घर आ जाना वे।

हूँ दूर बहुत,देखूँ अपलक,
तू आ, मुझको समझना वे
ढल रहा मेरा,यौवन मोती
आ,हारों में गूथ जाना वे,
जब प्रेम का ........

दे शरद मुझे,कांटों का चुभन
तुम मुझको अंक लगाना वे
हो,मस्त बसंत,पपीहा बोले
तुम प्रीत, गीत दुहराना वे
जब प्रेम का.........

जब पतझड़ में पत्ते न हो,
तुम फूल कोई, चुन लाना वे
होले से चुम कपोलों को
मेरे बालों में लगाना वे..

मौसम का क्या?भरमाएगा
न कभी दूर तुम, जाना वे
ये सांसें,ये धड़कन मेरी
न कभी इसे तड़पना वे

जब प्रेम का सावन बरसेगा
प्रियतम तुम घर आ जाना वे
जब ग्रीवा ग्रीष्म में तरसेगा
प्रियतम तुम घर आ जाना वे
जब.........2

दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़""" #आ जाना