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सागर की उथल पुथल में जो ना समाई, ढलती शाम की लाल



सागर की उथल पुथल में जो ना समाई,
ढलती शाम की लाली ना जिसे छुपा पाई,
पवन का झोंका ना उड़ा ले गया जिसे साथ, 
खाई सी बैठी है ऐसी क्या दिल में बात |

क्यूँ इन लबों पर किसी बात से ना हँसी आई,
क्यूँ ये भोर मुझे मना कर अलविदा कह गई,
क्यूँ साँझ ढलते ढलते निकली मेरी रुलाई,
है किसका इंतज़ार ए दिल बता....
जो पलके भीग आई |

ना चैन, ना सकूँ, बस बेक़रारी है छाई,
थक कर अब मुझ संग बैठी है बस मेरी परछाई,
हम दोनों में पसरी है ख़ामोशी जैसे अनजान कोई,
टीस उठ रही है दिल में हाय!ये कैसी तन्हाई |

©Rajni Sardana
  #परछाई
#तन्हाई