इश्क़ की क़ैद से रिहा होना लगे सज़ा जैसा, मुजरिम रहें ताउम्र हमेशा हो ये कब्ज़ा ऐसा। कहीं न मिला यों दर्द ऐसी मुस्कुराहटों वाला, नहीं ग़म,चाहे कटे शाम ओ सहर कज़ा जैसा। Inspired from Jai Kumaar's one of quotes #क़ैद #सज़ा #कज़ा #कब्ज़ा #मुजरिम #शाम_ओ_सहर