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वक़्त को कुछ और, थोड़ी-सी हरारत चाहिए । अब ये लाज़

वक़्त को कुछ और, थोड़ी-सी हरारत चाहिए ।
अब ये लाज़िम है कि, हर शै को शरारत चाहिए ।

आईने में देखकर चेहरा, वो शर्माने लगे
जैसे शीशे पर उन्हें, कोई इबारत चाहिए ।

आज जिस्मो-जान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन बिक रहे
और मेरे दौर को, कैसी तिज़ारत चाहिए ।

हिल गई दीवार, औ' बुनियाद भी हिलने लगी
टिक सके तूफ़ान में, ऐसी इमारत चाहिए ।

लोग फिरते हैं, नक़ाबों को यहाँ पहने हुए
कर सके जो बेहिज़ाबी, वह महारत चाहिए ।

आप करते हैं हिक़ारत, आदमी से किसलिए
जबकि अपनी ही हिक़ारत से, हिक़ारत चाहिए ।

हम बहस करते रहे 'पंकज' जहाँ चलता रहा
तय करो अहले-वतन किस ढंग का भारत चाहिए । वक़्त को कुछ और, थोड़ी-सी हरारत चाहिए ।
अब ये लाज़िम है कि, हर शै को शरारत चाहिए ।

आईने में देखकर चेहरा, वो शर्माने लगे
जैसे शीशे पर उन्हें, कोई इबारत चाहिए ।

आज जिस्मो-जान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन बिक रहे
और मेरे दौर को, कैसी तिज़ारत चाहिए ।
वक़्त को कुछ और, थोड़ी-सी हरारत चाहिए ।
अब ये लाज़िम है कि, हर शै को शरारत चाहिए ।

आईने में देखकर चेहरा, वो शर्माने लगे
जैसे शीशे पर उन्हें, कोई इबारत चाहिए ।

आज जिस्मो-जान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन बिक रहे
और मेरे दौर को, कैसी तिज़ारत चाहिए ।

हिल गई दीवार, औ' बुनियाद भी हिलने लगी
टिक सके तूफ़ान में, ऐसी इमारत चाहिए ।

लोग फिरते हैं, नक़ाबों को यहाँ पहने हुए
कर सके जो बेहिज़ाबी, वह महारत चाहिए ।

आप करते हैं हिक़ारत, आदमी से किसलिए
जबकि अपनी ही हिक़ारत से, हिक़ारत चाहिए ।

हम बहस करते रहे 'पंकज' जहाँ चलता रहा
तय करो अहले-वतन किस ढंग का भारत चाहिए । वक़्त को कुछ और, थोड़ी-सी हरारत चाहिए ।
अब ये लाज़िम है कि, हर शै को शरारत चाहिए ।

आईने में देखकर चेहरा, वो शर्माने लगे
जैसे शीशे पर उन्हें, कोई इबारत चाहिए ।

आज जिस्मो-जान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन बिक रहे
और मेरे दौर को, कैसी तिज़ारत चाहिए ।

वक़्त को कुछ और, थोड़ी-सी हरारत चाहिए । अब ये लाज़िम है कि, हर शै को शरारत चाहिए । आईने में देखकर चेहरा, वो शर्माने लगे जैसे शीशे पर उन्हें, कोई इबारत चाहिए । आज जिस्मो-जान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन बिक रहे और मेरे दौर को, कैसी तिज़ारत चाहिए ।