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पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ । रखो अँगीठी पास

पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ ।
रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।।

शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर ।
थर-थर काँपें गाँत है , जाएँ अब किस ओर ।।

शीत लहर से आज भी , होती साँसें बंद ।
सूर्यदेव का तेज ही , देता है आनंद ।।

सड़को पर सोते रहे , बेघर वें लाचार ।
कैसे आये नींद अब , चलती शीत बयार ।।

२०/१२/२०२२    -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ ।
रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।।

शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर ।
थर-थर काँपें गाँत है , जाएँ अब किस ओर ।।

शीत लहर से आज भी , होती साँसें बंद ।
सूर्यदेव का तेज ही , देता है आनंद ।।
पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ ।
रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।।

शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर ।
थर-थर काँपें गाँत है , जाएँ अब किस ओर ।।

शीत लहर से आज भी , होती साँसें बंद ।
सूर्यदेव का तेज ही , देता है आनंद ।।

सड़को पर सोते रहे , बेघर वें लाचार ।
कैसे आये नींद अब , चलती शीत बयार ।।

२०/१२/२०२२    -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पूस माघ की रात में, पडती ऐसी ठण्ड़ ।
रखो अँगीठी पास में , फिर भी देती दण्ड़ ।।

शीत लहर पर देख लो , चले न कोई जोर ।
थर-थर काँपें गाँत है , जाएँ अब किस ओर ।।

शीत लहर से आज भी , होती साँसें बंद ।
सूर्यदेव का तेज ही , देता है आनंद ।।