रक्स रक्स करती है दुनिया महज दौलत पर फिर क्यूँ मन मारे महज सफ़ेद पोशी पर सबनम होना दो दिन का कमाल नही है कितने मौसम बदले धरा की गर्दिश पर शीत किसी को भाता तो कोई कपकपाता फिर क्यूँ शोहरत वारे जरा सी बदनामी पर क्यूँ दुनिया बदनामी के सिरे बांधती दौलत को जबकी स्वंम रक्स करती घुँघरू बाधे पाओं पर कितने चेहरे ढके गए बस जरा सी धूप पर मगर शाम भी बदनाम है अपनी शूरत पर ये दुनिया है जिसे भाती बस अपनी खनक फिर क्यूँ परेशान हो मंतशा इसकी जात पर ©Kavitri mantasha sultanpuri #रक्स #gajal #KavitriMantashaSultanpuri