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हम समाहित हो चले हैं हुस्न के आगोश में इश्क़ है ना

हम समाहित हो चले हैं हुस्न के आगोश में
इश्क़ है ना होश में औ हुस्न है ना होश में 
हम लुटाने को चले हैं जो खजाना है अभी
कल न जाने क्या बचेगा आबरू के कोष में।

©Hari Shanker Kumar
  #हम लुटाने को चले हैं

#हम लुटाने को चले हैं #कविता

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