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खोज में इत्तिहाद की, और कितना भटकेंगे? और साथ चल

खोज में इत्तिहाद की, 
और कितना भटकेंगे?

और साथ चले तो,
एक दूजे को खटकेंगें।

कुछ हक़ीक़त का अब,
सरोकार करते हैं।

नफ़रत का ही सही,
चलो इकरार करते हैं।

... 

झूठ की इन बुनियादों पर,
मैं कब तक चलूंगा?

तुम सा होकर तो मैं,
खुद को भी खलूंगा।

बिगड़ते से रूतबों का,
अब इख्तियार करते हैं।

नफ़रत का ही सही,
चलो इकरार करते हैं।

©Charitendra Verma
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