कलयुग के इस दौर में सभी तरफ झूठ का बोल बाला है, झूठ बोलने से लोगो का पेट भरता है, झूठ बोलकर ही लोग भोग-विलास जैसे साधनों में लिप्त हो गये है, इन सभी कारणों से सत्य कही गायब हो गया है, इस युग में सत्य को भी अपने आप को बचाये रखने के लिए भी झूठ का सहारा लेना पड़ रहा है। इस युग में सत्य अपनी पहचान दे रहा है जो की निम्न कविता के माध्यम से प्रस्तुत है : घनघोर नभ में घन है , दिप्यमान फिर भी दिनकर है। सत्य पर मिथ्या का कब तक साया है , सत्य अटल प्रकाश पुंज बनकर छाया है।। हां मैं सत्य हूं मेरा तुमको ज्ञान कहां , हां मैं सत्य हूं मेरा होता सम्मान कहां। मिथ्या प्रिय अमृत समान मैं विष सा कटु हूं, मैं सत्य हूं अमिट हूं स्पष्ट हूं।। मिथ्या है रंग सा मैं गंगा जल हूं, रंगो मिलकर मैं भी रंग बन जाता हूं। मैं निकट रहूं यदि तो प्रसन्नचित भी मुरझाते है, मैं सत्य हूं इस लिए ठुकराते है।। हो विषाद या प्रमाद प्रिय मिथ्या वचन से, कुपितचित प्रसन्नचित हो जाते है। मेरे पुंज चिर घन को तम का नास करेगे, कुछ सत्यप्रिय सत्य पर ही विश्वास करेगे।। ©पूर्वार्थ #walkalone #कलयुग