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कितने विश्व ????? केवल इस धरती नामक ग्रह पर , जिस

कितने विश्व ????? 
केवल इस धरती नामक ग्रह पर , जिसे सम्पूर्ण विश्व के नाम से जानते है उसमें न जाने कितने ऐसे विश्व समाए हुए हैं जिनकी गणना करना बहुत ही दुरूह कार्य है  , हर एक प्रेमी ,प्रेमिका के लिए उसके साथी का प्रेम , एक माँ के लिए उसके बच्चे का प्रेम , एक बच्चे के लिए उसके पिता का प्रेम,एक भाई के लिए उसके बहन का प्रेम...... ही उसका सम्पूर्ण विश्व होता है , अपने भी कभी न कभी अवश्य सुना होगा किसी को यह कहते हुए कि यू मीन वर्ल्ड टू मी ।            
  जब एक साथी का दूसरे साथी से ,माता- पिता का अपने बच्चे से वियोग होता है ,चाहे कारण कोई भी हो ( मृत्यु ही क्यों न हो ) तो उस संसार के उजड़ने की पीड़ा उस आत्मा के लिए पृथ्वी के विध्वंस एवं विनाश की पीड़ा से कम नहीं होती है ,उसके अंदर का ये विध्वंस कभी-  कभी इतना प्रबल होता है कि स्वयं उस आत्मा को भी देह का त्याग करना पड़ता है ..।
    इस पृथ्वी पर अस्तित्वमान इन असंख्य ,अदृश्य संसारों के  टूटने बिखरने ,निर्मित होने का क्रम बिना अवरुद्ध हुए निरंतर जारी है ठीक पृथ्वी के निर्माण , विध्वंस एवं पुनर्निर्माण की प्रक्रिया की तरह । प्रकृति ही वह आधार प्रदान करती है जिससे ये आत्माएं  इस चक्र में निरंतर गतिमान रहते हुए प्राकृतिक नियमों का लगातार पालन करते रहें ।
                     - नित्या # कितने विश्व ???
कितने विश्व ????? 
केवल इस धरती नामक ग्रह पर , जिसे सम्पूर्ण विश्व के नाम से जानते है उसमें न जाने कितने ऐसे विश्व समाए हुए हैं जिनकी गणना करना बहुत ही दुरूह कार्य है  , हर एक प्रेमी ,प्रेमिका के लिए उसके साथी का प्रेम , एक माँ के लिए उसके बच्चे का प्रेम , एक बच्चे के लिए उसके पिता का प्रेम,एक भाई के लिए उसके बहन का प्रेम...... ही उसका सम्पूर्ण विश्व होता है , अपने भी कभी न कभी अवश्य सुना होगा किसी को यह कहते हुए कि यू मीन वर्ल्ड टू मी ।            
  जब एक साथी का दूसरे साथी से ,माता- पिता का अपने बच्चे से वियोग होता है ,चाहे कारण कोई भी हो ( मृत्यु ही क्यों न हो ) तो उस संसार के उजड़ने की पीड़ा उस आत्मा के लिए पृथ्वी के विध्वंस एवं विनाश की पीड़ा से कम नहीं होती है ,उसके अंदर का ये विध्वंस कभी-  कभी इतना प्रबल होता है कि स्वयं उस आत्मा को भी देह का त्याग करना पड़ता है ..।
    इस पृथ्वी पर अस्तित्वमान इन असंख्य ,अदृश्य संसारों के  टूटने बिखरने ,निर्मित होने का क्रम बिना अवरुद्ध हुए निरंतर जारी है ठीक पृथ्वी के निर्माण , विध्वंस एवं पुनर्निर्माण की प्रक्रिया की तरह । प्रकृति ही वह आधार प्रदान करती है जिससे ये आत्माएं  इस चक्र में निरंतर गतिमान रहते हुए प्राकृतिक नियमों का लगातार पालन करते रहें ।
                     - नित्या # कितने विश्व ???
nityasingh8525

Nitya Singh

New Creator

# कितने विश्व ??? #अनुभव