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चुप रहूं या बोल दूं, या कुछ ऐसे डोल दूं,, मैं नि

चुप रहूं या बोल दूं,

या कुछ ऐसे डोल दूं,,

मैं निष्ठुर अनजान कोई,

क्या राज जुबां से खोल दूं।।

मैं निर्झर निर्मल सा,

आक्रोश मेरा दुर्बल सा,,

सादगी ही पहचान मेरी,

क्या मैं कल_कल करना छोड़ दूं!।।

दूध सा उज्ज्वल चरित्र मेरा,

कर जाऊं हर कर्म पवित्र तेरा,,

शांति ही है प्रतीक मेरा,

ऐसे कैसे जहर घोल दूं।।

भुजाओं में बची अभी ताकत है,

क्या कमजोर समझ आंकत है!।।

इन्हीं हाथों से उठे हैं खड्ग_भाल मेरे,

क्या गुमान अब पत्थर का तोड़ दूं।।

मैं हरदम चिंतन करता हूं,

बस चाह किंचन करता हूं,,

क्या उठ रहे मन में तेरे सवाल,

कहो तो सत्य तराजू में खुद को तोल दूं।।।


WRITTEN BY(संतोष वर्मा)आजमगढ़ वाले
खुद की ज़ुबानी मेरी पहचान
चुप रहूं या बोल दूं,

या कुछ ऐसे डोल दूं,,

मैं निष्ठुर अनजान कोई,

क्या राज जुबां से खोल दूं।।

मैं निर्झर निर्मल सा,

आक्रोश मेरा दुर्बल सा,,

सादगी ही पहचान मेरी,

क्या मैं कल_कल करना छोड़ दूं!।।

दूध सा उज्ज्वल चरित्र मेरा,

कर जाऊं हर कर्म पवित्र तेरा,,

शांति ही है प्रतीक मेरा,

ऐसे कैसे जहर घोल दूं।।

भुजाओं में बची अभी ताकत है,

क्या कमजोर समझ आंकत है!।।

इन्हीं हाथों से उठे हैं खड्ग_भाल मेरे,

क्या गुमान अब पत्थर का तोड़ दूं।।

मैं हरदम चिंतन करता हूं,

बस चाह किंचन करता हूं,,

क्या उठ रहे मन में तेरे सवाल,

कहो तो सत्य तराजू में खुद को तोल दूं।।।


WRITTEN BY(संतोष वर्मा)आजमगढ़ वाले
खुद की ज़ुबानी मेरी पहचान