मुझको चाहनेवाले, तुम्हारे बन्द खाँचों में, नहीं रह पाऊंगा । मुझको मांगनेवाले, जितना बाँधना चाहोगे, मैं उड़ जाऊंगा । सोचो तो, तुम्हारी सोच के हर दायरे से दूर हूँ चाहो तो, तुम्हारे दिल की हर धड़कन में, मैं मिल जाऊंगा । मुहब्बत होगी तुम्हें, मेरे वजूद से, ये मानता हूँ मेरी नामौजूदगी में भी, इश्क़ सिर्फ मुझसे ही हो, तो मैं मिल जाऊंगा । नहीं है कोई भी बन्धन तुम्हारे फैसलों में होगा ज़रूरी तो, तुम्हारे फैसलों में, मैं कहीं दिख जाऊंगा । जिसने पा लिया मुझको , मुझे वो खो नहीं सकता बीते वक़्त के यादों के पन्नों में, कहीं पे मैं लिखा मिल जाऊंगा । मुझको चाहनेवाले , तुम्हारे बन्द खाँचों में, नहीं रह पाऊंगा । ~अनंत