जब याद तेरी आखिर-ऐ-शब आई दीदा-ऐ-नमनाक में उफान आई दिल-ऐ-मुज्जतर को भी ना शकेबाई मेरे गमखाने में मसरुद ना मरगूब आई सुब्द-दम को सुरसार सबा ये पैगाम लाई तेरे हिस्से में मता-ऐ-गम आई याद-ए-रफ़्तगा बन शब-ए-खाब आई दिल के दहलीज पे जैसे दीवारे-ए-गम आई ©Dushyant Barnwal आखिर-ऐ-शब =रात का अंतिम प्रहर दीदा-ऐ-नमनाक - अश्रुपूर्ण नैन दिल-ऐ-मुज्जतर =चिंतित मन शकेबाई=धैर्य गमखाने = गम का घर मसरुद =आनंदित मरगूब=सुखद सुब्द-दम =सुबह का समय