उसकी हँसी के ज़रिए, अपनी ख़ुशी ढूँढ़ रही हूँ मैं, उसके ख़याल से ही अपना ख़याल रख रही हूँ मैं।। एक तो दिल के चोर, ऊपर से करे सीना-जोरी भी, उसके ख़िसाल से अपना ख़िसाल सीख रही हूँ मैं।। ज़िंदगी के अँधेरों में उजाले सा तो है उसका आना, उसके जमाल में ही, अपना जमाल देख रही हूँ मैं।। उसका हर अल्फ़ाज़ लगता है जैसे हो सुख़न कोई, उसके मक़ाल से ही अपना मक़ाल लिख रही हूँ मैं।। ख़िसाल-Talent, जमाल- Beauty, मक़ाल- Sentence, सुख़न- शायरी #रमज़ान_कोराकाग़ज़ दूसरा दिन