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होला छन्द १११ २२२ २ सब यहाँ चोखा है । बस दि

होला छन्द 

१११    २२२  २

सब यहाँ चोखा है ।
बस दिए धोखा है ।।
मत कहो झूठा हूँ ।
सच यही रूठा हूँ ।।

न कह टूटी-फूटी ।
अजब है अंगूठी ।।
पहन लो हाथों में ।
फिर घुले बातों में ।।

गगन तारे देखे ।
घर बसे अंगारे ।।
फिर न कोई पाया ।
अजब है ये माया ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR होला छन्द 

१११    २२२  २

सब यहाँ चोखा है ।
बस दिए धोखा है ।।
मत कहो झूठा हूँ ।
सच यही रूठा हूँ ।।
होला छन्द 

१११    २२२  २

सब यहाँ चोखा है ।
बस दिए धोखा है ।।
मत कहो झूठा हूँ ।
सच यही रूठा हूँ ।।

न कह टूटी-फूटी ।
अजब है अंगूठी ।।
पहन लो हाथों में ।
फिर घुले बातों में ।।

गगन तारे देखे ।
घर बसे अंगारे ।।
फिर न कोई पाया ।
अजब है ये माया ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR होला छन्द 

१११    २२२  २

सब यहाँ चोखा है ।
बस दिए धोखा है ।।
मत कहो झूठा हूँ ।
सच यही रूठा हूँ ।।

होला छन्द १११ २२२ २ सब यहाँ चोखा है । बस दिए धोखा है ।। मत कहो झूठा हूँ । सच यही रूठा हूँ ।। #कविता