कमरतोड़ मेहनत पर विश्राम नहीं , ये श्रमिक हैं पर अब इनपर काम नहीं, थकन भी है और चुभन भी , पांव जलते हैं पर चले जाते हैं। जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।। १ रात लंबी है अंधे कुंए सी गहरी , इनके लिए ना कोई इफ्तार ना कोई सहरी , कांधे पे उम्मीद की गठरी फिर भी लिए जाते हैं । जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।२ ना रहगुजर कोई , ना कहीं रहनुमाओं के पर , साथ है तो एक बस दर्द मगर , रहम की मुनादियों के शोर फिर भी सुने जाते हैं । जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।३ श्रमबीज जहां बोया उस माटी ने दुत्कार दिया , जिस आंगन जन्म लिया उसने भी कहां सत्कार किया, क्या कर्म भूमि क्या मात्र भूमि , ये हर पथ पे लहू बहाते हैं । जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।४ अपने ही देश में इनका कोई स्थान नहीं , ये निर्माणकर्ता पर इनका कोई सम्मान नहीं , अपने आंसुओं की गंगा ये खुद ही पिए जाते हैं । जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।५ बेबसी रोती है चीत्कार करती है , घनघोर पीड़ा ये मानवता को शर्मसार करती है , क्या इसलिए हम मनुष्य जन्म पाते हैं? जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।।६ ~सुगंध कमरतोड़ मेहनत पर विश्राम नहीं , ये श्रमिक हैं पर अब इनपर काम नहीं, थकन भी है और चुभन भी , पांव जलते हैं पर चले जाते हैं। जीवन मजबूरी ही सही पर जिए जाते हैं ।। १ रात लंबी है अंधे कुंए सी गहरी , इनके लिए ना कोई इफ्तार ना कोई सहरी ,