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बेटी बचाओ बेटियाँ कमाती हैं नाम, सजाती हैं घर का

बेटी बचाओ 
बेटियाँ कमाती हैं नाम, सजाती हैं घर का कोना - कोना 
अपने कमाये हुये स्मृतिचिह्नों से 

सजाती हैं घर की अलमारियाँ, प्रतियोगी पुरस्कारों से 
बनाती हैं फूल पत्ती,तितलियाँ पुराने कार्डों से 
कभी बुनती हैं, गुड़िया का स्वेटर रंगबिरंगी ऊन का 
तो कभी कुछ नया करती हैं 
कभी ज़िद नहीं करतीं, बेटों के जैसे शहर घूमने की 
और न ही निकलती हैं वे अकारण घरों से 

सपने बुनती हुई न जाने कब बड़ी हो जाती हैं बेटियाँ 
और उठा लेती है कन्धों पे घर के हरेक काम की ज़िम्मेदारी 
बन जाती हैं माँ की सहायक 
बनाती हैं,  छोटी छोटी मख़मली पोशाकें
तो कभी टाँगती हैं गुलदस्ते दीवारों पर 
ये सब उनके ही हुनर हैं

आँगन कितना ही बड़ा क्यों न हो
एक दिन बहुत छोटा ही रह जाता है 
जब बँधती है वही बेटी विवाह बंधन में
बदल जाते हैं, पल भर में आँगन उसके 
वो पुरस्कार छूट जाते हैं, अलमारियों में ही 
वो तितलियाँ धूल फांकती हैं, चिपककर दीवारों से 
जब एक बेटी घर से विदा होती है

💐🕉️मौलिक रचना 
✍️कुमार अनुज सोलंकी #बेटियाँ
#Daughter
#Daughters
बेटी बचाओ 
बेटियाँ कमाती हैं नाम, सजाती हैं घर का कोना - कोना 
अपने कमाये हुये स्मृतिचिह्नों से 

सजाती हैं घर की अलमारियाँ, प्रतियोगी पुरस्कारों से 
बनाती हैं फूल पत्ती,तितलियाँ पुराने कार्डों से 
कभी बुनती हैं, गुड़िया का स्वेटर रंगबिरंगी ऊन का 
तो कभी कुछ नया करती हैं 
कभी ज़िद नहीं करतीं, बेटों के जैसे शहर घूमने की 
और न ही निकलती हैं वे अकारण घरों से 

सपने बुनती हुई न जाने कब बड़ी हो जाती हैं बेटियाँ 
और उठा लेती है कन्धों पे घर के हरेक काम की ज़िम्मेदारी 
बन जाती हैं माँ की सहायक 
बनाती हैं,  छोटी छोटी मख़मली पोशाकें
तो कभी टाँगती हैं गुलदस्ते दीवारों पर 
ये सब उनके ही हुनर हैं

आँगन कितना ही बड़ा क्यों न हो
एक दिन बहुत छोटा ही रह जाता है 
जब बँधती है वही बेटी विवाह बंधन में
बदल जाते हैं, पल भर में आँगन उसके 
वो पुरस्कार छूट जाते हैं, अलमारियों में ही 
वो तितलियाँ धूल फांकती हैं, चिपककर दीवारों से 
जब एक बेटी घर से विदा होती है

💐🕉️मौलिक रचना 
✍️कुमार अनुज सोलंकी #बेटियाँ
#Daughter
#Daughters