दरिचे में रखी तेरी ख़त पढ़के, मेरी आँखें भर आई कर दर्द की सारी हदो को पार, मेरी आँखें भर आई कैसे..?तुमनें हर जर्रे में, लिखी दिल की वो हर बात ख़तों की देख मासूम जज़्बात, मेरी आँख भर आई सुबह की ही बात है , बागों में फूलों पर मंडराते हुए भौरें ने जब लब रखे लबों पे,तों मेरी आँख भर आई जिस बिस्तर पर, सुकूँ की वो रातें गुज़ारी थी हमनें देख उस पर खाली सिलवटे, मेरी आँखें भर आई देखो न..फ़ासला हम दोनों के दरमियाँ यूँ बढ़ आई सोच बेबस दिल की सरहदों को,मेरी आँख भर आई तुमनें दिल की ख्वाहिशों को दबा मुस्कुराने को कहा दिल को शिला कर मुस्कुराया,तों मेरी आँख भर आई हर ख़त ही बन गया, तेरी यादों की दर्पण मेरे "निशा" याद कर गुज़रें हसीन लम्हों को, मेरी आँखें भर आई मन की कैनवास पे एहसासों की भीगी कलम से,, लौट आया पुराने रंग की छींटे... हल्की हल्की बारिश में,,, उनके कुछ ख़त फड़फड़ा रहें थे ❤☺️ So enjoys Mythical syahi ✨️✨️ Have a splendid day 💝🤗