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तेरा रूठ जाना.....था मुझको रुलाना, वो वायदा खिलाफी

तेरा रूठ जाना.....था मुझको रुलाना,
वो वायदा खिलाफी.....तेरा दूर जाना,
कसम से चले थे.......वो राहें वफ़ा के,
तेरा याद आना.......नियत है दुआ के,
नियत है दुआ के....नियत है दुआ के।

वो आँसू हैं अपने,जो निकले नयन से,
जो गुस्सा मेरे मन,तब निकले ज़हन से,
पूछो हवा से.....क्यों वो रातें थी काली,
नहीं थे जो पास.....कोसो दूर नयन से,
कोसो दूर नयन से,कोसो दूर नयन से।

भूलों का मालिक....मैं धूल का सेवक,
नफ़रत निवाला......भी खाया फ़क्र से,
ये जीवन है  दौलत मेरी  साँसें हैं ईंधन,
टुटूंगा,झुकूंगा......पर रहूँगा अकड़ से,
रहूँगा अकड़ से........रहूँगा अकड़ से।

सहूँगा दर्द रातें.....तेरी गुजरी वो बातें,
रखूंगा सुरक्षित........ना दूर ज़हन से,
ना दूर ज़हन से........ना दूर ज़हन से।


सुना था वो किस्से तेरे दर्द-ए- जुबानी,
कैसे भुला दूँ.........तेरे ज़ख्म कहानी,
जीवन यही है.........नौका और पानी,
बढ़ चल रे साथी.........यही है रवानी,
यही है रवानी.............यही है रवानी।

दुःखों के बादल.........बरसते बहुत हैं,
पाँव के छाले.............दुखते सबूत हैं,
पड़े खाने के लाले,दिल सहता बहुत हैं,
कहो न किसी से.....सब हँसते बहुत हैं,
ये जीवन अकेला.......तड़पता बहुत है,
बढ़ चल रे साथी,अभी लड़ना बहुत है।
बढ़ चल रे साथी,अभी लड़ना बहुत है।

मंजिल ना महफ़िल.....यहां है न रौनक,
खुद से जुड़ो जब.......वही एक दौलत,
वही एक दौलत.........वही एक दौलत।

शहंशाह हूँ मैं.........महल से ना जन से,
है गम मेरी दौलत,सबल निर्भीक मन से।
तेरा रूठ जाना.....था मुझको रुलाना,
वो वायदा खिलाफी.....तेरा दूर जाना,
कसम से चले थे.......वो राहें वफ़ा के,
तेरा याद आना.......नियत है दुआ के,
नियत है दुआ के....नियत है दुआ के।

वो आँसू हैं अपने,जो निकले नयन से,
जो गुस्सा मेरे मन,तब निकले ज़हन से,
पूछो हवा से.....क्यों वो रातें थी काली,
नहीं थे जो पास.....कोसो दूर नयन से,
कोसो दूर नयन से,कोसो दूर नयन से।

भूलों का मालिक....मैं धूल का सेवक,
नफ़रत निवाला......भी खाया फ़क्र से,
ये जीवन है  दौलत मेरी  साँसें हैं ईंधन,
टुटूंगा,झुकूंगा......पर रहूँगा अकड़ से,
रहूँगा अकड़ से........रहूँगा अकड़ से।

सहूँगा दर्द रातें.....तेरी गुजरी वो बातें,
रखूंगा सुरक्षित........ना दूर ज़हन से,
ना दूर ज़हन से........ना दूर ज़हन से।


सुना था वो किस्से तेरे दर्द-ए- जुबानी,
कैसे भुला दूँ.........तेरे ज़ख्म कहानी,
जीवन यही है.........नौका और पानी,
बढ़ चल रे साथी.........यही है रवानी,
यही है रवानी.............यही है रवानी।

दुःखों के बादल.........बरसते बहुत हैं,
पाँव के छाले.............दुखते सबूत हैं,
पड़े खाने के लाले,दिल सहता बहुत हैं,
कहो न किसी से.....सब हँसते बहुत हैं,
ये जीवन अकेला.......तड़पता बहुत है,
बढ़ चल रे साथी,अभी लड़ना बहुत है।
बढ़ चल रे साथी,अभी लड़ना बहुत है।

मंजिल ना महफ़िल.....यहां है न रौनक,
खुद से जुड़ो जब.......वही एक दौलत,
वही एक दौलत.........वही एक दौलत।

शहंशाह हूँ मैं.........महल से ना जन से,
है गम मेरी दौलत,सबल निर्भीक मन से।