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जिंदगी है तो, हैं जरूरतें, जरूरतों से जन्म लेती चा

जिंदगी है तो, हैं जरूरतें,
जरूरतों से जन्म लेती चाहतें,
चीटियों की, कतार-सी।
नहीं देख पाते,कोई छोर,
न उद्भव न अंत।
चाहतें,जो खत्म ही नहीं होती,
एक-एक कर बढ़ती ही जाती,
एक पूरी होती,अगली उभर आती।
टूटता ही नहीं, कभी यह क्रम,न ही हमारा भ्रम।
ये जरूरतें कभी,चाहतों से आगे
बढ़कर जिद,बन जाती है,
जायज-नाजायज,में फर्क नहीं कर पाती है,
इन जरूरतों और जिद के जद्दोजहद में
पूरी जिंदगी यूँ ही बीत जाती है। जिंदगी है तो,
जरूरतें हैं,
जरूरतों से जन्म 
लेती हैं चाहतें,
चीटियों की
कतार-सी।
नहीं देख पाते,
कोई छोर,
जिंदगी है तो, हैं जरूरतें,
जरूरतों से जन्म लेती चाहतें,
चीटियों की, कतार-सी।
नहीं देख पाते,कोई छोर,
न उद्भव न अंत।
चाहतें,जो खत्म ही नहीं होती,
एक-एक कर बढ़ती ही जाती,
एक पूरी होती,अगली उभर आती।
टूटता ही नहीं, कभी यह क्रम,न ही हमारा भ्रम।
ये जरूरतें कभी,चाहतों से आगे
बढ़कर जिद,बन जाती है,
जायज-नाजायज,में फर्क नहीं कर पाती है,
इन जरूरतों और जिद के जद्दोजहद में
पूरी जिंदगी यूँ ही बीत जाती है। जिंदगी है तो,
जरूरतें हैं,
जरूरतों से जन्म 
लेती हैं चाहतें,
चीटियों की
कतार-सी।
नहीं देख पाते,
कोई छोर,

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