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यारा लो ढल गया सूरज ,शाम हो गईं हरकतें जहाँ की,




यारा लो ढल गया सूरज ,शाम हो गईं
हरकतें जहाँ की, वक्त के नाम हो गईं

बज्म ए सुखन में, जाम जबसे छलके हैं जबसे 
तब से बज्म ए ख्वातीन भी बदनाम हो गईं।

मांझी से मुस्तकबिल तक, सब वक्त के हाथ में हैं
वक्त को काबू करने की, कोशिशे तमाम हो गईं।

सुबह से शाम तक का सिलसिला बदला नहीं
हालात बदलते नहीं, जिंदगी सबकी आम हो गईं 






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©Kamlesh Kandpal
  #twilight