इश्क की राह में चली, नहीं हो पाई सफल जितना भी भुलाना चाहूँ, हो रही हूँ विफल समझ ना आए अब, क्या और कैसे करूँ खुद का हौसला पड़ेगा जगाना, वही बनेगा मेरा संबल • मेरा संबल • ````````` वाणी में है विषाद के कण, हृदय में है नव कौतूहल, श्वासों में कंपन है, पग अस्थिर है और मन भी चंचल। आँखों में अब किसी की भी अमर-प्रतीक्षा नहीं रही, मेरी श्वास,निःश्वास की ध्वनि ही मेरा एक मात्र संबल।