हर सुबह शाम जिससे लड़ता झगड़ता था , जिसे हर रोज सुला कर ही सोता था, आज वो बूढ़ी दादी, न जाने कहा मेरी आंखों से ओझल हो गई । मेरी दिल की असीम पीड़ा अगर वो जान जाती वो जहा भी होती, मेरे पास आ जाती । मेरी नजर बस उन्हें ही ढूंढ रही है मेरे दिल और मन में अजीब सी मंथन बढ़ रही है उन्हे देखे बिना मेरा ये ,मन शांत न होगा अगर न मिली वो ,शायद कल तक मेरा जान न होगा । ©बद्रीनाथ✍️ #दादीमाँ #दादी