मैं कहने ही वाला था, पर वो मैं कहने ही वाला था पर जज़बादों को वो अलफा़ज नही मिले मेरा मोहब्बत इबादत बन चुकी थी लेकिन तुझे समजने के लिए वक्त लगा हर बार की कोशिश कहने की पर क्योंकि तेरी आँखो में मजबुरी का अहेसास मिला कभी गरीबी तो कभी समाज के दायरे बीच में आ जाते थे कैसे जी पाऐंगे एक दुजे के बिना पत्थर दिलवालों को पता ना चला तु तो चला गया ऐ हमदम मुझे अदमरा छोडकर तु मेरी रुह से जुडी थी पर खुदा को भी समजने वक्त लगा मै कहने ही वाला था,पर वो भी वही कहना चाहती थी वक्त की बेरहमी देखो थोडा और रुक ना पाया अब वक्त है उसके बिना और हमने हर पल में सांसे होते हुए भी मुर्दा पाया| मै कहने ही वाला था पर वो..